बड़वानी जिले में पहाड़ी पर है भीलटदेव शिखरधाम, नागपंचमी पर उमड़ते हैं श्रद्धालु
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सतपुड़ा की पहाड़ी पर बने प्राचीन भीलटदेव मंदिर का इतिहास करीब 700 वर्ष पुराना है।Add caption |
बाबा भीलट देव का इतिहास करीबन 818 साल पुराना है। भगवान शिव के वरदपुत्र माने गए बाबा भीलट देव का जन्म हरदा जिले के रोलगांव पाटन में गवली परिवार में पिता रेलन माता मेदांबाई के यहां हुआ था। बाबा ने बचपन में ही अपनी चमत्कारिक लीलाओं से परिवार व ग्रामवासियों को आर्श्चयचकित किया था।
बालक भीलट देव की तंत्र शिक्षा-दीक्षा भगवान शिव व पार्वती की देखरेख में संपन्न् होना माना जाता है। तांत्रिक शक्तियों को आजमाने के लिए बाबा भीलट देव अपने साथी भैरव के साथ देशभर में जाकर कई तांत्रिकों ओझाओं को पराजित कर तंत्र शक्तियों का लोहा मनवाया।
बाबा भीलट देव का विवाह बंगाल की राजकुमारी राजल के साथ हुआ था। बाबा भीलट देव ने अपनी शक्तियों से जनमानस की सेवा के लिए ग्राम नागलवाडी को चुना एवं अपनी तपस्या के लिए समिपस्थ सतपुड़ा की ऊंची पहाड़ी के शिखर को चुना।
बाबा भीलट देव को सभी भक्तजन मनोकामनाएं पूर्ण करने वाले मानते हैं। कहा जाता है कि बाबा के दरबार में जो भी भक्त अपनी मनोकामना लेकर आया है वह पूर्ण होती है।
इसमें किन्नर से जुड़ी एक कहानी का भी लोग अक्सर उल्लेख करते हैं। ईश्वरीय शक्ति होने से बाबा भीलट देव को श्रद्धालुजन साक्षात नागदेव के रुप में पूजते हैं। नागपंचमी के दिन यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
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